Tuesday 11 August, 2009

विश्व स्तनपान सप्ताह के मौके पर लेखन कार्यशाला का आयोजन

स्तनपान है जीवनदायक

विश्व स्तनपान सप्ताह के मौके पर होटल लेकव्यू अशोका में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला का आयोजन राज्य स्वास्थ्य सूचना शिक्षा संचार ब्यूरो द्वारा यूनिसेफ और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विवि के सहयोग से किया गया। दो दिवसीय इस कार्यशाला में विषय विशेषज्ञों ,वरिष्ठ पत्रकारों और छात्रों के अतिरिक्त यूनिसेफ, माखनलाल विश्वविद्यालय और स्वास्थ्य विभाग के प्रतिनिधि भी मौजूद रहे।

कार्यशाला का दिनवार ब्यौरा-

पहला दिन


" स्तनपान को बढावा देकर प्रदेश की शिशु म्रत्युदर को लगभग १४ फीसदी तक कम किया जा सकता है, इसके लिए स्तनपान के बारे में सही परामर्श उपलब्ध कराकर उसे बढावा देना जरूरी है ", ये कहना है स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त संचालक डॉ एस के श्रीवास्तव का वे कार्यशाला में स्तनपान को लेकर अपने विचार प्रकट कर रहे थे। डॉ श्रीवास्तव ने बताया कि जन्म लेने के बाद ६ माह तक माँ का दूध बच्चों के लिए अमृत समान होता है। इस अवसर पर डॉ अमिता सिंह ने कहा की बच्चों के जन्म के बाद माँ को भी अतिरिक्त कैलोरी की जरुरत होती है। इसलिए उन्हें भोजन के अलावा पूरक पोसन आहार भी देना चाहिए। हालांकि उसे लेकर अभी भी जागरूकता का अभाव है। कार्यशाला में यूनिसेफ के प्रतिनिधि मनीष माथुर ने बताया कि जन्म के बाद मरने वाले बच्चों में ६० फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार होते हैं इनके कुपोषण की मूल वजह मां का दूध न मिल पाना है। इसके अलावा डॉ वीणा सिंह ने कहा कि स्तनपान को बढावा देते हुए हमें समाज में फैले बेटे और बेटी के अन्तर को भी ख़त्म करना होगा, जो अभी भी समाज में व्याप्त है। उन्होंने नवजात को दूध कब और कितने महीने तक पिलाना चाहिए इसकी जानकारी भी दी। उनका कहना था कि हमे हर माँ को स्तनपान के लिए जागरूक करने की आवश्यकता है। यदि माँ बीमार है तब हम उसे बीमारी से बचाव के साथ बच्चों को दूध पिलाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। इसके अलावा उन्होंने कई वैज्ञानिक पहलुओं को भी समझाया। कार्यशाला में आए विषय विशेषज्ञों ने छात्र-छात्रों के सवालों के जवाब देकर उनकी जिज्ञासाओं को शांत किया।

दूसरा दिन

"हर रिश्ता वहां समाप्त हो जाता है, जहां प्रेम समाप्त हो जाता है। चाहे वह प्रेमी-प्रेमिका का रिश्ता हो या मां-बेटे का। हर पत्रकार को लिखते वक्त अपनी बात को तात्कालिक स्थिति से जोड़कर लिखना चाहिए",ये कहना है वरिष्ठ पत्रकार शरद द्विवेदी का। कार्यशाला के दूसरे दिन विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के छात्रों ने स्तनपान से सम्बंधित समाज में फैले मिथकों पर लेख और फीचर प्रस्तुत किए। छात्र- छात्राओं ने मां के आहार, बच्चों के लिए दूध की उपयोगिता जैसे विभिन्न आयामों पर लेख लिखे। कार्यशाला में उपस्थित विषय विशेषज्ञों व जाने-माने पत्रकारों ने बीच-बीच में विद्यार्थियों को उचित सलाह एवं जानकारियां प्रदान की प्रस्तुतकर्ताओ में जहां एक छात्रा ने स्तनपान के लिए मां के आहार पर लेख प्रस्तुत किया तो वहीं दूसरे छात्र ने बच्चों के लिए मां के दूध की सार्थकता को उल्लेखित किया एक छात्र द्वारा प्रस्तुत लेख के बारें में पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष ने कहा कि हमें लिखते वक्त विषय के हर पहलुओं पर सामंजस्य बनाये रखना चाहिए जिससे हम पूरी तरह से निष्पक्ष होकर अपनी बातों को पाठकों तक पहुंचा सके कार्यशाला में उपस्थित वरिष्ट पत्रकार प्रसून मिश्रा ने एक लेख पर कहा कि लेख लिखते समय जब दिमाग में पहला विचार उत्पन्न हो तो उसे रोककर दूसरे विचार को और विस्तार से लिखने का प्रयास करना चाहिए इसी क्रम में वरिष्ट पत्रकार सूर्यकांत त्रिपाठी ने बताया कि लेखों में तारतम्यता को बनाये रखना चाहिए लेख को अधिक आकर्षक बनाने का भी प्रयास करना चाहिए कार्यशाला के समापन के अवसर पर यूनिसेफ के मनीष माथुर ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि मीडिया स्तनपान जैसे विषयों को जन-जन तक पंहुचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है स्तनपान से जुडी भ्रांतिया इस विषय पर लगातार लेखन से दूर हो सकती है प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए यूनिसेफ के डॉ संजय ने कहा कि मीडिया को यह बात स्पष्ट करनी चाहिए कि स्तनपान के द्वारा किस तरह से बच्चों को बीमारियों से बचाया जा सकता है कार्यशाला में वरिष्ट पत्रकार, पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष और सभी विद्यार्थी उपस्थित रहे।